तुम
अप्रतिम प्रतिमा सी या
छन्द बद्ध कविता सी !
क्या सम्बोधित करू तुम्हे
ओ झिलमिल झिलमिल मुक्ता सी !!
अवगुण्ठन के बन्धन से
मुक्त हुए थे तेरे वो दो नैना !
चचल नयनों के कम्पन से
कम्पित हुई थी ह्रदय की रचना !!
प्रथम मिलन था या सुन्दर स्वप्न
अविस्मृत है वह सुखद सिरहन !
तुम चन्द्र प्रभा सी रही बिखरती,
सम्मोहित सा था मेरा तन मन !!
विलुप्त हो गयी जनसागर में
देकर जीवन की पहचान मुझे !
खोज रहा हूँ कण कण में,
लेकर अपना सूना संसार तुझे !!