तुम
सुप्त निशा के स्वप्निल आंचल मे
विसरित हो ज्यों स्वप्न सुनहरा….
स्मित नव किसलय की आभा सी,
स्वरलहरी ज्यों छंद रुपेहरा …
मदमस्त विश्व के कोलाहल मे शांत
हो तुम जैसे गंगा की धारा …
तारक मंडल के झुरमुट से
झांक रहा हो ज्यों ध्रुव तारा….
मिट्टी की काया कही गल ना जाये
नयनो का पानी तेरा गहरा सागर सा…
श्रांत पथिक का व्यथित मानस भी
उल्लसित हो ज्यो लक्ष्य हो तेरा सा…
सलिल शमशेरी ‘सलिल’