तुम ही रहते सदा ख्यालों में
तुम ही रहते सदा ख़्यालों में
जब से सूरत बसी निगाहों में
इश्क का रोग क्या लगा हमको
जागते हैं, न सोते रातों में
जब से तुम दूर हो गए हमसे
मन ही लगता नहीं बहारों में
क्यूँ हुये बेवफ़ा बताओ तो
क्या कमी थी हमारी चाहों में
जो इरादों में जोर रखते हैं
जीत होती उन्हीं के कदमों में
शब्द तारीफ़ में कहें क्या हम
एक तुम ही तो हो हज़ारों में
कोई शिकवा न था गिला कोई
दर्द था सिर्फ उनकी आँखों में
जितने भी तुम गुलाब लाए थे
महकते आज भी किताबों में
‘अर्चना’ वो नहीं मिला अब तक
माँगते जो रहे दुआओं में
डॉ अर्चना गुप्ता
31.03.2024