” तुम से नज़र मिलीं “
तुम से नज़र मिली….
बाग में कलियां खिलीं……
रंग बदलने लगा आकाश सुनहरा……
श्रंगार करने लगी वसुंधरा……
चमकने लगें पीपल के पत्ते……
सजे है मँजिल से खूबसूरत रस्ते……
तुम से नज़र मिली……
शब्दों ने अपनी जुबां सिली……
बोलने लगी खामोशी……
मौसम में भी छाने लगी मदहोशी……
होने लगी दिल की बातें……
करने लगी यादें मुलाकातें……
तुम से नज़र मिली……
बाग में कलियां खिलीं……
खिल उठा हो जैसे बचपन मेरा……
लगने लगा सारा जहान मेरा……
पलकों पर तुम्हें सजाना है……
काजल नही आँखों में तुम्हें बसाना है……
तुम से नज़र मिली….
आँखें ये हो गयी गीली….
जागने लगी रातें….
प्यारे वो पल सतातें….
अंनत प्रेम है तुम से, इसमें मेरी ख़ता नही….
किताबों में छूपाने लगी हूँ आँसू है या स्याही पता नही….
तुम से नज़र मिली……
खुद को भी मैं भुली……
बस गये ध्यान में तुम……
बन गये प्राण तुम…..
आ गयीं हो जैसे पत्थरों में जान……
बन गये तुम मेरी प्राथना और भगवान…..
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना