तुम सा कुछ है ।
तुम पास नही हो मग़र तुम सा कुछ है
दूर रहकर भी मुझें वहम सा कुछ है
तेरी यादों का इक पुलिंदा साथ रखता हूं
मेरे छत के ऊपर आसमां सा कुछ है ।
यू तो रातें करती है सिर्फ़ तुम्हारी बातें
ये रात मुझपर शायद मेहरबां सा कुछ है ।
तेरे रुख़सार पे जो है नज़रें टिकी मेरी
उसके बाद से ये दुनिया धुंधला सा कुछ है
मुझें पढ़ लेना इतना आसान नही था मग़र
तूने जैसे पढ़ा शायद इम्तेहां सा कुछ है
तुमसे मिल कर लब कपकपा रहे है मेरे
शायद मेरा दिल अभी परेशां सा कुछ है ।
मैं ख़ामोश हु तो इसे खामोशी न समझो
मेरे अंदर उभरता ये दर्द-ए-बयां सा कुछ है ।
वो चराग़ बुझ न जाए कही इस बात का डर है
मेरे कमरे में अभी भी हवा सा कुछ है ।
मेरी उम्र का अंदाजा मत लगाना यारों
सच ये है कि दिल अभी जवां सा कुछ है ।
– हसीब अनवर