तुम शब्द मैं अर्थ बनूँ
तुम बनो शब्द सा यदि प्रवाह,
मैं अर्थ की धारा बनूं ।
तू एक पग आ तो सही
मैं चार पग आगे बढूं ।
तुम साथ दो मेरा अगर
न विघ्नों से फिर मैं डरूं।
प्रतिमान नव निर्माण के
कुछ तुम गढ़ो कुछ मैं गढूं ।
जीवन तेरे बिन ये मेरा
जैसे पतंग बिन डोर है।
आशा नहीं मंजिल नहीं
कोई ओर है न छोर है।
चलना अगर है संग सदा
तो क्यों न हम मिलकर चलें ।
गतिमान हो निज लक्ष्य प्रति
खुशियां सभी संग में वरें ।
अनुहार तुम मनुहार तुम
तेरी प्रेरणा भी मैं बनूं ।
तुम प्रीत की वर्षा बनो
मैं भू समर्पण की बनूं ।
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