तुम मुझको हो प्रिय!
तुम मुझको हो प्रिय!
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तुम मुझको हो प्रिय,
हृदय में तेरा ही वास
तुझको ही ढूंढ़ती हैं आंखें।
और करूं मैं इंतजार क्या!
तेरा ही पथ देखें नैना,
पल-पल राह निहारे
प्रिय! तुम आ जाओ।
अभिनंदन करूं तेरा क्या!
तेरे अधर की वंशी बनकर,
साथ तेरा पल-पल चाहूं
तेरा भजन दिन-रात गाऊं।
तेरी पुजारिन बन जाऊं क्या!
छोड़ दिया कुल अपना मैंने,
आ गई मैं शरण तुम्हारी
तुझमें ही खो जाना चाहूं।
जन्म -जन्म की प्यासी में क्या!
प्रेयसी! बनकर तुमको पूजा,
तेरी ही मूर्ति है हृदय में
दीपक बाती सा जलकर।
रोशन कर लें जीवन क्या!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर