– तुम मुझको क्या जानोगे –
तुझ मुझको क्या जानोगे –
नही जान सके हमे जन्मदाता,
न ही सहोदर सहोदरा,
न ही कुल वंश न परिवार जान चुका,
मेने किए परिवार को संगठित करने का काम,
बिखरा हुआ है आज तक अपने अपने गुमान,
तत्कालीन सुखों को हवन कर देना चाहा मेरे योगदान,
तत्कालीन त्याग का हुआ सदा उपहास,
सब अपने -अपने में खोए हुए,
क्यों करता गहलोत आने वाले समय में कुल पर संकट के बादल की बात,
अभी जो त्याग करते है उनका होता भावी जीवन में सम्मान,
याद करते उन कालजयि लोगो को झूठी श्रद्धा के साथ,
मेरे अपने ना जान सके अब तक मुझे,
फिर तुम मुझको क्या जानोगे,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान