तुम मलयज शीतल चंदन हो…।
तुम मलयज शीतल चंदन हो …
जीवन मेरा तपती दुपहरी
तुम मलयज शीतल चंदन हो !
तुमसे मिलकर
जाना यह मैंने
तुम जीवन का आकर्षन हो !
शब्दों में तुम्हें बाँधू कैसे
पकड़ नहीं तुम आते हो
एक झलक मोहक दिखलाकर
फिर ओझल हो जाते हो !
तुम में खोकर
जाना यह मैंने
तुम ही जीवन का दर्शन हो !
मेरे मन को मंदिर-सा
पावन तुमने बना दिया
स्पर्श कर मेरी ज्वलित वेदना
चंदन-सा शीतल बना दिया
नयन मूँद कर
जाना यह मैंने
तुम ही मेरी पूजा-अर्चन हो !
सींच मेरे मन की क्यारी
जीवन को महकाया तुमने
जिजीविषा का स्फुलिंग
मन में मेरे दहकाया तुमने
तुम संग जीकर
जाना यह मैंने
तुम जीवन का स्पंदन हो !
बैठी रही मैं आस लगाए
पलक-पाँवड़े राह बिछाए
अटके रहे प्राण अधर में
जब तलक तुम नजर न आए
पलभर बिछड़कर
जाना यह मैंने
तुम प्राणों की धड़कन हो !
नजरों से भले ही दूर रहो
मन में सदा ही समाए रहना
जी न सकूँगी बिना तुम्हारे
बस यूँ ही प्यार बनाए रहना
रूह से लिपटकर
जाना यह मैंने
तुम एक सबल अवलंबन हो !
चित्रलिखित-सी जड़ीभूत हो
अहर्निश मैं तुम्हें निहारूँ
कान्हा- सा सम्मोहन तुममें
मैं मीरा-सी तुम्हे पुकारूँ
बँध प्रेम-पाश में
जाना यह मैंने
तुम एक मर्यादित बंधन हो !
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“मृगतृषा” से