तुम भी पतंग बन जाओ
छोड़ के सारे दर्द गमों को,
जग में खुशियाँ फैलाओ,
उड़ो नेह डोर में बँध कर,
इस धरा को खूब हर्षाओ,
तुम भी पतंग बन जाओ।
ठंढी सर्द हवाओं में भी,
झूम झूम कर मुस्काओ,
देखो नील गगन छूना है,
पर कभी भी न इतराओ,
तुम भी पतंग बन जाओ।
न बनना मांझा सीसे का,
गर्दन परिंदों का बचाओ,
धीरे- धीरे ऊपर उठ कर,
शीर्ष छूने का पाठ पढ़ाओ,
तुम भी पतंग बन जाओ।
जब हो कमी प्राण वायु की,
सह-सह हिचकोले खाओ,
और समय जब अनुकूल हो,
लहरा पूँछ गगन छू जाओ,
तुम भी पतंग बन जाओ।
देखो दुनिया की नजरों से,
हरदम अपनी डोर बचाओ,
कट भी जाओ गर मांझे से,
गिर कर जग को ललचाओ,
तुम भी पतंग बन जाओ।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.