तुम भी ना
तुम भी ना
दर्दो में रहती हो, कुछ भी ना कहती हो
मुझको बताती हो, मुझसे छुपाती हो
अपना समझके, मुझमे समाती हो
तुम भी ना
चाहती हो सब कुछ, पर कहती नहीं हो
चाहती हो देना, पर दिल देती नहीं हो
चाहती हो बन्ना, पर बनती नहीं हो
तुम भी ना
अपनों से अपनी हो, पर बनती नहीं हो
अपना बनाकर भी, रखती नहीं हो
गैरों के संग भी, पर चलती नहीं हो
तुम भी ना
देखती हो मुझको, पर देखती नहीं हो
मरती हो मुझपर, पर मरती नहीं हो
रोती हो कितना, पर रोती नहीं हो
तुम भी ना
दिल से तो मेरी हो, पर जताती नहीं हो
जलाती हो कितना, पर जलती नहीं हो
हँसाती हो सबको, पर हँसती नहीं हो
तुम भी ना
तड़फाती हो कितना, पर तड़फती नहीं हो
अलग तो हो सबसे, पर लगती नहीं हो
प्यार तो बहुत है, पर बताती नहीं हो
तुम भी ना
प्यार तो दिखाती हो, पर जताती नहीं हो
पास तो बुलाती हो, पर आती नहीं हो
डराती हो बहुत, पर डरती नहीं हो
तुम भी ना
बनाती हो आपना, पर बनती नहीं हो
दिखाती हो गुस्सा, पर करती नहीं हो
मनाती हो सबको, पर मनती नहीं हो
तुम भी ना
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“ललकार भारद्वाज”