तुम बूंद बंदू बरसना
सब शीत ताप सहते सहते
तन मन कोमलता छूट गई ।
टकरा टकरा आघातों से
केंचुल तन मन की कठोर हुई।।
तुम बूंद बूंद बरसोगे जब
तब जा मुझको पा पाओगे ।
एक साथ यदि बरस गए
फिर तुम रीते हो जाओगे ।
और कहाँ मेरी कठोरता
भेद नेह जल संचित होगा ।
फिसलेगा सिल पर गिरकर
यत्र तत्र सब बिखरेगा ।
माना है ये अति तपी शिला
बूँदे बस छ्न-छन बोलेंगी ।
पर रोज बरस कर बूंद-बूंद
सब ताप एक दिन हर लेंगी ।
अपनी ये यात्रा लम्बी है
तो धैर्य सब्र भी रखना है ।
न दौड़ दौड़ कर हाँफेगे
बस धीरे-धीरे ही चलना है।
न तेरा घट रीता होगा
न मुझे ताप झुलसाएंगे ।
नित तेरे ही प्रणय गीत
गा अधर अमरता पायेंगे ।