तुम बिन जाऊँ कहाँ!
तुम बिन मैं जाऊँ कहाँ? हर कहीं आवश्यक मास्क,
पहले साँस जो न आती, आसान बना अब तो टास्क।
काले-गोरे का फ़र्क हटाया, रंग एक हर मुख पर छाया,
सच्ची-झूठी मुस्कान छिपाई, रूप-कुरूप भेद मिटाया।
तुम बिन मैं जाऊँ कहाँ? हमजोली रबड़ दस्ताने,
चटपट पहना काम शुरु, न चलें सुस्ती के बहाने।
छू-छूकर हर वस्तु देखी, नहीं किसी का छुआ दिल,
दूर-दूर रहता हूँ सब से, हाथ जोड़ता चलता मिल।
तुम बिन मैं जाऊँ कहाँ? हस्त प्रक्षालन के द्रव्य,
सर्वत्र तेरा सेवन नियम, दरिद्र घर या इमारत भव्य।
ले-ले छींटें अपनी हथेली, हवन नहीं पर हो आचमन,
हाथ शुद्ध हर घड़ी करूँ, रहने दूँ चाहे कलुषित मन।
तुम बिन मैं जाऊँ कहाँ? ओ! ज़ूम टीम और मीट,
मोबाइल-लैपटॉप में तुम, संग नए ऐप्स की फ़्लीट।
घर बैठे मिल सकूँ सभी से, दोस्त पुराने गहरे नाते,
दूरी घटी कि दूरी बढ़ी, गले लगे बिन चैन न पाते।
तुम बिन मैं जाऊँ कहाँ? कैशलैस धन के बैंक कार्ड,
सिक्के गिनने की खनक, भुलवाने का तुमको अवार्ड।
धंधे बंद, छूटे रोजी-कमाई, उजली-किरणें कब होंगीं फ़्लैश?
तेरी ताकत तब मानूँ कोरोना! खत्म जो हो भ्रष्टता का कैश!
-डॉ. आरती ‘लोकेश’
दुबई, यू.ए.ई.