तुम ढाल हो मेरी
तुम ढाल हो मेरी बिन तेरे ये जीवन युद्ध न लड़ पाऊँगी ,
साथ रहो तुम ,पर तलवार मैं ही चलाऊँगी //
बिन तेरे तो आगे मैं एक पग भी न धर पाऊँगी,
नयी हूँ मैदान मैं कैसे सबके वार सह पाऊँगी ?//
तुम ढाल हो मेरी बिन तेरे…………………………
बंजर धरती हूँ ,अब इसमें न तुम प्रेम बीज वो पाओगे,
मरुस्थल मन मेरा,यहाँ कैसे प्रेम प्यास तुम्हारी बुझाउंगी //
संदेह नही प्रेम पर तेरे,न अस्वीकार इसे कर पाऊँगी ,
किन्तु क़र्ज़ चुकाने प्रेम करूँ ,ये अंतर्मन को कैसे समझाउंगी //
अर्जुन होकर भी चक्रव्यूह मैं फसी हुयी हूँ,भेद पाना कठिन है इसको ,
प्रयत्न किये “रत्न” ने ,पर लगता है न बाहरआ पाऊँगी //
तुम ढाल हो मेरी बिन तेरे………………………………….