तुम जलाते रहे,मै जलती रही –आर के रस्तोगी
तुम जलाते रहे,मै जलती रही |
बिन आग के ही,मै जलती रही ||
तुम यकीन देते रहे,मै करती रही |
धोखा खाया तो,हाथ मलती रही ||
वादा मुझसे किया,शादी और से की |
ये बात जिन्दगी में,मुझे खलती रही ||
तुम वादा करते रहे,और मुकरते रहे |
धीरे धीरे पैरो की जमीं निकलती रही ||
तुम्हारी हर ख्वाश्य मै पूरी करती रही |
पर मेरी हर ख्वाश्य यूही मचलती रही ||
पास रहकर भी मुझसे तुम दूर होते रहे |
दूरियां मुझको जिन्दगी भर खलती रही ||
तुम्हे हर वख्त,मै दिल से चाहती रही |
यही जिन्दगी में, हर बार गलती रही ||
कहने को तो बहुत कुछ है,पर कहती नहीं |
यही कारण है,ये दिल में मेरे पलती रही ||
तुम सदा मुस्कराते रहे,मै सदा रोती रही |
इसी तरह से,ये मेरी जिन्दगी चलती रही ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम (हरियाणा)