तुम चुप रहो तो मैं कुछ बोलूँ
तुम चुप रहो तो मैं कुछ बोलूँ
सत्य के रहस्य की परत खोलूँ
उनकी फ़रियाद थी की न्याय मिले
कहो तो खुद को तराजू में बराबर तौलूँ
सत्य का घूँट होता बड़ा कड़वा
चाह उनकी कि मैं इसमें मिश्री घोलूँ
लोभ लालच का सागर फैला अपार
वो कहते हैं मैं बहती गँगा में हाथ धोलूँ
जुबां रुँधी है बुद्धि भी सठिया गयी है
थक गया हूँ मैं चलो कुछ देर चैन से सो लूँ
भवानी सिंह “भूधर”