तुम गजल मेरी हो
गर हुस्न सल्तनत में हुकूमत मेरी हो,
तो मोहब्बत को ऐसी मोहब्बत मेरी हो,
किताबों के पन्नें वो छुप छुप के देखें,
जहां भी वो देखें तो सूरत मेरी हो।
@साहित्य गौरव
इन आंखों में हर वक्त चाहत मेरी हो,
ख्वाब देखने की इन्हे आदत मेरी हो,
बाहों में भर लो मुझे और थोड़ा,
बस आगोश में तेरे अब राहत मेरी हो।
@साहित्य गौरव
गर इश्क कायनात तो जन्नत मेरी हो,
उस रब की बनाई हसीं कुदरत मेरी हो,
मैं फूलों का आशिक बस इतना ही चाहूं,
हो बहारों का मौसम तो चाहत मेरी हो।
@साहित्य गौरव
बागों में तितलियों से सोहबत मेरी हो,
रंग रंगो से रंगीन जरा रंगत मेरी हो,
खिलने लगे जब गुलाबों में कलियां,
तो महबूब के दिल में बस हसरत मेरी हो,
@साहित्य गौरव
तुम गजल प्यार की खूबसूरत मेरी हो,
मीठे लफ्जों से बनी तुम इबारत मेरी हो
भले लिखना भी चाहे तुझे कोई बेहतर
जिक्र मेरा ही होगा तुम आयत मेरी हो,
@साहित्य गौरव