” तुम खुशियाँ खरीद लेना “
इश्क़ की सौदेबाज़ी
तुम इस कदर कर देना…!
बेचकर हमारे आँसुओं को
अपने लिए तुम खुशियाँ खरीद लेना…!!
.गर हो कभी हमारी कमी का एहसास
तुम उस एहसास को भी दर्द दे देना…!
कोई भी कर न पाएगा तुम्हें परेशान
तुम परेशानियों को हमारा पता दे देना…!!
भुलाकर मौहब्बत का मौसम
तुम खुद को तन्हाई का आलम न देना…!
बेचकर हमारे आँसुओं को
अपने लिए तुम खुशियाँ खरीद लेना…!!
चाहत का समा तो बना है सिर्फ तुम्हारे लिये,
तुम पतझड़ का मोड़ हमारी ओर कर देना…!
फूलों की राहों पर हर कदम तुम्हारा पड़े
तुम काटों के रास्तों पर हमें अकेले ही छोड़ देना…!!
जब मंजिल का पता न हो, उन रास्तों पर
तुम अपने कदमों को तकलीफ न देना…!
बेचकर हमारे आँसुओं को
अपने लिए तुम खुशियाँ खरीद लेना…!!
छोड़ दिया जिस तरह तुमनें हमारा हाथ,
किसी ओर के लिए किसी का साथ छोड़ न देना…!
राहत मिल ही जाएगी एक ना एक दिन इस दिल को भी
तुम तसल्ली का झूठा दिलासा न देना…!!
इश्क़ की सौदेबाज़ी
तुम इस कदर कर देना…!
बेचकर हमारे आँसुओं को
अपने लिए तुम खुशियाँ खरीद लेना…!!
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना