**तुम क्या जानो दास्तां**
**तुम क्या जानो दास्तां**
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तुझे नजरों मे छुपाया है,
खुद के दिल मे बसाया है।
तुम क्या जानो ये दास्तां,
तुम्हे पलकों पै बैठाया है।
एक पल भी कटता नहीं,
दिन लम्बा है ढलता नही,
मार डालेगी तेरी इंतजार,
भूले से भी न भुलाया है।
तुम्हें पलकों पै बैठाया है।
प्यार में हम बने है रोगी,
रांझे जैसे बने हम जोगी,
घर से बे-घर हुए हम तो,
तेरी यादों ने सताया है।
तुम्हें पलकों पै बैठाया है।
देख कर दिल भरता नहीं,
दीप प्रेम का जलता नहीं,
टस से मस न हो जानेमन,
कैसा बुरा रोग लगाया है।
तुम्हें पलकों पै बैठाया है।
उम्मीदें हम ने छोड़ी नहीं,
कूचे – गलियाँ छोड़ी नही,
तुम्हारा बन कर हमसाया,
शिद्द्त से धर्म निभाया है।
तुम्हें पलकों पै बैठाया है।
मनसीरत है खोया-खोया,
दिन – रात तेरे लिए रोया,
जरा देखो तो आकर यहाँ,
आंचल रो-रो भिगोया है।
तुम्हें पलकों पै बैठाया है।
तुझे नजरों मे छिपाया है।
खुद के दिल मे बसाया है।
तुम क्या जानो ये दास्तां,
तुम्हें पलकों पै बैठाया है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)