तुम कहो अगर
तुम कहो अगर
मैं जीवन भर
तव सेवा में सन्नद्ध रहूं
तेरी हर ख्वाहिश पूर्ण करूं
तेरे प्रति चिर प्रतिबद्ध रहूं
तुम कहो अगर
मैं जीवन भर
तुमसे न कभी रक्खूं नाता
तव याद बसा लूं मैं उर में
मुख मोड़ रहूं फिर मुसकाता
तुम कहो अगर
मैं जीवन भर
कविता करने में मस्त रहूं
तुमसे जब भी कुछ कहना हो
कविता में अपनी बात कहूं
तुम कहो अगर
मैं जीवन भर
बोलूं न एक भी शब्द कभी
मेरी वाणी के श्रवण हेतु
तरसें युग की देवियां सभी ।
— महेश चंद्र त्रिपाठी