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18 Mar 2020 · 1 min read

तुम कहाँ बैठे हुए हो मुँह फुलाए

दिल भला लम्हात वो कैसे भुलाए
जब खड़े थे सामने तुम सिर झुकाए

वो मिला बैठा हुआ अपने ही भीतर
हम जिसे चारों दिशा में खोज आए

तुम बहारों में बनो पतझड़ भले
हम तो बैठे हैं खिजाँ में गुल खिलाए

मैं यहाँ पर चाँद-तारे ले के आया
तुम कहाँ बैठे हुए हो मुँह फुलाए

आप ही बतलाइए तरकीब कोई
नाज-नखरे किस तरह ‘संजय’ उठाए

1 Like · 404 Views
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