तुम कर सकते हो
तुम कर सकते हो जिन्हें पूर्ण ,
वो स्वप्न अधूरे रहे अगर ।
फूलों से जिसे सजा सकते हो ,
कंटकमय वो रही डगर ।।
इस निष्क्रियता के लिए प्रश्न ,
जब तुम ही तुम से पूछोगे ।
तब अपने ही अपराधी बन
बोलो फिर क्या उत्तर दोगे ?
जब मन के दरवाजे , यादों की
भीड़ खड़ी दस्तक देगी ।
रातों की नींद उड़ेगी तब ,
व्याकुल आत्मा हिसाब लेगी ।।
जब साथ नहीं होगा कोई ,
निर्जन में तुम ही तुम होंगे ।
तब अपने ही अपराधी बन ,
बोलो फिर क्या उत्तर दोगे ?
इतिहास उठाकर देखोगे ,
जिनने ऐंसे अवसर खोए ।
बीत गया जब समय अंत में ,
वेहद खुद पछताए रोये ।।
इन लोगों के जीवन से जब ,
तुम कुछ सीख नहीं लोगे ।
तब अपने ही अपराधी बन ,
बोलो फिर क्या उत्तर दोगे ?