तुम और बिंदी
तुम और बिंदी
************
तुमसे मेरी बिंदी का
एक रूमानी रिश्ता है
बिंदी विवाहित जीवन का चंदन है
सात्विक्ता पवित्रता का बेजोड़ बंधन है
तुम हो तो बिंदी है
तुम्हारी पहचान है
मेरे मुखड़े , मेरे सर पर
दोनों आँखों में
एक तुम्हारी छवि भरकर
मायके से अकेले ही चली
और जा पहुंची तुम्हारे घर
सारे अपरचित थे
तुम ही तो थे मेरे अपने
छोड़ बचपन की अल्हड़ स्मृतियाँ
तुम ही तो थे
मेरी जगी आँखों के सपने
आँखों के ऊपर लगी
यह जो सुर्ख बिंदी है
यह भरोसा है मेरे आज का
आने वाले कल का
यह भरोसा है
प्रेम की कुटिया का
या सपनों के महल का
यह माथे पर यूं नहीं सजी है
बिंदी मेरा विश्वास है
कुटुंब की आस है
तुम्हारे लिए तो यह
और भी खास है
बिंदी सुहाग की निशानी है
यह हम हिंदुस्तानी औरतों की
सतीत्व की कहानी है
– अवधेश सिंह