तुम आ जाते तो अच्छा होता
तुम आ जाते तो अच्छा होता
तुम आ जाते तो अच्छा होता
बिखरा जो पड़ा है
वो सब सिमट जाता
तुम्हारे प्यार की महक से
रोम रोम पुलकित हो जाता
पवन के झोंके सम आते
तो तपिश सारी ढह जाती
पल भर में समाँ बदल जाता
तुम आ जाते तो अच्छा होता …
मन के कितने किवाड़ खुल जाते
बंद पड़े झरोखों से झांक
हसरतें भी मुस्कुरा उठती
बेज़ुबान अहसासों को
सच्ची ज़ुबान मिल जाती
मन के भावों की मैं
रंगीन चादर बुन जाती
बेजान पतझड़ के पतों सम पड़ा
मेरा वजूद भी खिल उठता
तुम आ जाते तो अच्छा होता
रिसते घावों पर तुम्हारे प्यार का
कोमल सा मलहम लगा लेती
सालों धूल जमी हुई इच्छाओं को
ज़रा खुली हवा दिखा देती
खिसकती सी ज़िंदगी को ज़रा
मुट्ठी में सहेज कर रख लेती
तुम्हारी आवाज़ की कतरन से ही
अपना मन बहला लेती
ज़िंदगी को मेरी एक
नया अवाम मिल जाता
तुम आ जाते तो अच्छा होता
स्वरचित मीनू लोढ़ा