तुम आती थी..
तुम आती थी….अल्हड़ मस्त चाल
अप्सरा सी… लहराते फहराते बाल,
धूप की छुअन से लाल गाल
छोड़ जातीं थी कितने सवाल।।
जीवन के रंग से भरी रहती थी
हिरणी सी ठुमक-ठुमक कर चलती थी,
बिन कहे कितना कुछ कहती थी
कल कल सरिता सी बहती थी।।
अनदेखा सा कर जाती थी हर बार
पर छेड़ जाती थी अन्तर्मन के तार,
तुम्हें देखने को दिल मचलता था हर बार
क्या हो गया था मुझे तुमसे प्यार ।।
कब उधर से आओगी राह देखता था
बेचैन सा मन सवाल पूँछता था,
क्या तुम्हारा दिल भी कुछ यूं ही धड़कता था?
क्या तुम्हारा भी मुझे देखने को जी तड़पता था?
जिन्दगी के सवाल सवाल ही रह गये
सुलझना था जिन धागों को उलझे ही रह गये,
दिल महीने साल में तिल तिल कर बीत गये
बक्त की चाल में बस धुंधली सी याद रह गये।।
?
डा. यशवन्त सिंह राठौड़