तुम आए हो
शीर्षक – ” तुम आए हो?”
उमड़- घुमड़ श्यामल मेघावरि
दमक रही तड़ तड़ित दामिनी
शोर हुआ घनघोर घटा का
झर – झर बुंदियाँ बरसाए हो
सुना है कि तुम आए हो………
धवल हैं उत्तुंग शिखरों
खिलखिलाती मुग्धा सी वसुधा
मतवाली हुई जाती तरंगिनी
हरीतिमा है हर्षाई
नव किसलय जँह-तँह हैं अंकुरित
पात- पात में समाए हो
सुना है कि तुम आए हो………
रुनक – झुनक सुन कर अंबुद की
जुगनू दीप जलें झींगुर गाएं
विहंसि वल्लरि लिपट गाछ से
पुष्प-पुष्प रतनारी छाए
सौरभ्य कण-कण महकाए हो
सुना है कि तुम आए हो………
लुभा रही प्रकृति लावण्या
मिलन के मेघ मल्हार सुनाती
इन्द्रधनुष इतरा- इतरा करे इशारे
पीहू – पीहू पपीहरा पुकारे
झूलों पर कजरी गाए हो
सुना है कि तुम आए हो………
सृष्टि को लावण्या बनाकर
प्रावृट् का सौन्दर्य है चहुंदिश
पावस छाया है अब तृण-तृण
बरखा, श्रावण, बारिश या वर्षा
तुम ही तो सब कहलाए हो
सुना है कि तुम आए हो………
ऋतु लगती बैचैन बावरी
क्षितिज है स्वर्णाभा श्रृंगारित
नेह सुधा रस बरसाए हो!!
प्रेम पीयूष बिखराए हो!!
हाँ प्रिय सावन तुम आए हो!!
हाँ प्रिय सावन तुम आए हो!!
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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