तुम्हें मैं पा न सका
जितना तड़पा था तुझे पाने के लिए,
आज कोशिश में हूँ उसे तड़पाने के लिए,
वेवफ़ा मेरा प्यार कोई गुनाह तो नहीं,
तिन-तिनके जिया हूँ तुझे भुलाने के लिए ।
दर-दर भटका था क़भी अपनाने के लिए ।
सर्वश्व किया कुर्बान तेरे पास आने के लिए,
आज मोहलत माँगते हो मुझसे हफ़्तों की,
क़भी न दी मोहलत मुझे चन्द छड़ों के लिए ।
आदतें बदली जाती हैं बदल जाने के लिए,
मैं तो आज़ाद परिंदा हूँ उड़ जाने के लिए,
“आघात” प्यार का ऐतबार कर तू ख़ुशी से,
लाखों रह जाते हैं मरहूम इसे पाने के लिए ।