तुम्हें देखा
आज मुद्दतों के बाद
मैने तुम्हें तसल्ली से देखा।
इस भाग दौड़ की जिन्दगी मे
पहली बार आराम करते देखा।
जब तक थे तुम इस जहाँ मे
हरदम तुम्हें भागते हुए देखा।
पहली बार मैने तुम्हें
ऐसे सकुन से लेटे हुए देखा।
जब कहती मै तुम्हें बैठ जाओ
थोड़ी देर आराम कर लो यहां।
लेकिन तुम थे जो मेरी बात न सुन रहे थे
और भाग रहे थे यहाँ- वहाँ ।
करते रहे उम्र भर तुम अपनी मनमानियाँ
आज भी तो तुम फिर से वही कर रहे हो।
आज फिर जब कह रही हूँ मै तुमसे
उठ जाओ
और तुम हो जो गहरी नींद में सोए जा रहे हो।
आज भी कर रहे हो तुम अपनी मनमानियाँ
आज भी तुम मेरी बात कहाँ सुन रहे हो ।।
~अनामिका