तुम्हें क्या पता …
तुम्हें क्या पता …
वो सवाल जो होठों पर सिले हैं
वो मौन जो अंतर्मन से चीखता है
वो निस्पंद आखें जो बेबस बोलती हैं
वो दिल जो इंतेज़ार में पसीजता है
वो विरह पीड़ा जो नित जलाती है
वो प्यार जो परिधि में कसकता है
क्या दे सकोगे मेरे सवालों का जवाब
क्या रख सकोगे मेरी वेदना का हिसाब
जाओ माफ़ किया तुम्हारी सारी ख़ता
प्यार क्या होता है ये तुम्हें क्या पता
रेखा
कोलकाता