तुम्हें अपनी धुन पर नचाया कहाँ है।
गज़ल
काफिया-आया
रदीफ-कहाँ है
122…..122…..122…..122
तुम्हें अपनी धुन पर नचाया कहाँ है।
अभी प्रेम का गीत गाया कहाँ है।
कि तुम मोर बन नृत्य करने लगोगी,
अभी मेघ सावन भी लाया कहाँ है।
न महगाई रोने को मजबूर कर दे,
अभी सबको जी भर सताया कहाँ है।
मेरे इश्क में तुम भी लैला बनोगी,
अभी इश्क ने रँग दिखाया कहाँ है।
तेरे बाद खाया है भूखा हूँ फिर भी,
कि माँ तेरे हाथों से खाया कहाँ है।
जो देता था ठंडी घनी छाँव पीपल
वही एसी औ कूलर भी लाया कहाँ है।
शहर की फिजा में न वो बात प्रेमी,
कि वो गाँव सा प्यार पाया कहाँ है।
……..✍️प्रेमी