तुम्हीं बताओ मैं क्या लिखूं
हृदय पट में अरमान तो बहुत आए
पर कागज पर उतर ना पाए
भाव मन में लहरों की तरह हिलोरे खाए
बनते बनते शब्द चित से फिर मिट जाए
इस असमंजस में तुम्हीं बताओ मैं क्या लिखूं…..
कभी कभी मन को भी कुछ सूझ ना आए
कभी पागल तो कभी दीवाना बन जाए
मैं क्या बताऊं किस उलझन में है मेरा दिल
इस उलझन में तुम्हीं बताओ मैं क्या लिखूं…..
मन मस्ति्क में उथल पुथल मचा जाए
मन विचारों में ही ख्वाब टूटा जाए
इस उथल पुथल की मनोदशा में
तुम्हीं बताओ मैं क्या लिखूं…
– कृष्ण सिंह