तुम्हारे सिवा और दिल में नहीं
तुम्हारे सिवा और दिल में नहीं, मैं खुश हूँ तुमसे ही बहुत।
करता रहूँगा तुमसे ही प्यार, नहीं और किसी से मुहब्बत।।
तुम्हारे सिवा और दिल में————-।।
मैं और किसी को क्या चाहूँगा, आँखों में हरदम तू ही है।
लाऊँगा और दिल मैं कहाँ से,मेरा ख्वाब तो बस तू ही है।।
कर दी है तुमको ही अर्पण, मेरी खुशी और सारी दौलत।
तुम्हारे सिवा और दिल में————-।।
और किसी पे नहीं यकीन, इसलिए तुमसे वफ़ा मैंने की।
तुम हो दिल से बहुत पवित्र, कभी नहीं खता तुमने की।।
झूठे हैं और सारे चेहरे, तुम ही हो मोहब्बत की मूरत।
तुम्हारे सिवा और दिल में —————-।।
सिर्फ तुमको ही हक दिया है, बनने को मेरा मनमीत।
सिर्फ तुम्ही से मुझको है मतलब, तुम ही हो मेरी प्रीत।।
सिर्फ तुम्हारा मैं हूँ गुलाम, औरों से जी आजाद बहुत।
तुम्हारे सिवा और दिल में —————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)