तुम्हारे शहर
तुम्हारे शहर का जाने रिवाज कैसा है।
पूछता कोई नही है मिज़ाज कैसा है।
❤️
ना कोई रखते सफर ना कोई महरम अपना।
बीमारे इश्क का का जाने इलाज कैसा है।
?
कभी खुलूस से मिलते थे अब नही मिलते।
हमदर्द पहले था हमराज आज कैसा है।
तुम्हारे शहर का जाने रिवाज कैसा है।
पूछता कोई नही है मिज़ाज कैसा है।
❤️
ना कोई रखते सफर ना कोई महरम अपना।
बीमारे इश्क का का जाने इलाज कैसा है।
?
कभी खुलूस से मिलते थे अब नही मिलते।
हमदर्द पहले था हमराज आज कैसा है।