तुम्हारे बस की बात नहीं
मैं गुमसुम हूँ यहीं इर्द गिर्द अपने
लिए अनेकों अपूर्ण सपने
खुद को पाने की तमन्ना बहुत है
मेरा जूनून चौकन्ना बहुत है
मेरी हो पाई है खुदसे कभी मुलाक़ात नहीं
मुझे ढूंढ पाना अब तुम्हारे बस की बात नहीं
सुख दुख के बीच मझधार में
दम नहीं है किस्मत की पतवार में
एक नहीं अनगिनत बार लड़ा हूँ
परेशानियों के रूबरू मैं खड़ा हूँ
जिंदगी के वीरान रस्ते पर मिला किसी का साथ नहीं
मुझे ढूंढ पाना अब तुम्हारे बस की बात नहीं
काश के मैं खुद मे खो जाऊँ
बस एकबार खुद का हो जाऊँ
आफतों के लिए शूल हो जाऊँ
बुरे वक्त के लिए गूलर फूल हो जाऊँ
ये दृढ़ संकल्प है मेरा अनकहा जज्बात नहीं
मुझे ढूंढ पाना अब तुम्हारे बस की बात नहीं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी