तुम्हारे दीदार की तमन्ना
ग़ज़ल
तुम्हारे दीदार की तमन्ना में साँस कुछ कुछ तो चल रही है
जो तुम मुहब्बत की शम’अ दिल में जला गये थे तो जल रही है
बनी है सीलन इन आँसुओं की जमी हुई है ग़मों की काई
लबों की चौखट तक आते आते हँसी हमारी फिसल रही है
जमी हुई बर्फ़ ग़म की दिल की जो वादियों में कई दिनों से
मिली जो हमदर्दी की हरारत¹ तो अश्क बन कर पिघल रही है
खड़े हैं सफ़² में सलौने सपने बड़े अदब से ये हाथ बाँधे
है बे-मुरव्वत ये नींद मेरी यहाँ वहाँ क्यों टहल रही है
हुआ है जख़्मी ये जिस्म मेरा बहुत हुआ दाग़दार दामन
‘अनीस’ मुँह फेर लो उधर तुम ये रूह कपड़े बदल रही है
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
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