तुम्हारी बेटी ने
माँ तुम्हारी बेटी ने कुछ पल छुपा रखे थे
तुम्हारे साथ बिताने को..
मैने कुछ बातें छिपा रखी थी…
फुर्सत में तुमसे बताने को..
कुछ पैसे जमा किये थे….
तुम पर खर्च करने को….
माँ तुम्हारी बेटी ने कुछ पल छुपा रखे थे
तुम पर न जाने क्यों रुठ गई
तुम एक पंछी की तरह उड़ गयी…
तुम संग मेरे छोड़ सभी बातें..
तुम्हारे साथ सभी सिंचित पल~
मन की दीवारों पर सजाने को,,
माँ तुम्हारी बेटी ने कुछ पल छुपा रखे थे
तुम सदा मेरे पास रहोगी
किसी रोज तुम्हारे पास बैठूंगी…
तुम्हारे साथ खुल कर फिर हसुँगी..
इत्तीमिनान के वो पल ढूंढ़ न सकी..
मन की ये बातें कर न सकी….
माँ तुम्हारी बेटी ने कुछ पल छुपा रखे थे
अब न जाने तुम कहाँ हो~
मेरे मन के द्वार पर रोज नये फूल खिलते हैं
तुम्हारी हंसी की तरह बेमौसम खिलते हैं..
इनका गुलदस्ता रोज बनाती हूँ…..
अपने सिरहाने लगाती हूँ ~
माँ तुम्हारी बेटी ने कुछ पल छुपा रखे थे
तुम्हारे मन सा ही गुनगुनाती हूँ…
तुम जैसी बन पाऊँ,,,,
जीवन में तुम जैसे रंग भर पाऊँ ~
अब एक कोशिश रोज करती हूँ…
तुम्हारी तरह हर आने वाले त्योहारों तैयारी करती हूँ.
माँ तुम्हारी बेटी ने कुछ पल छुपा रखे थे
तुम सी किलकारी से मन को रोज गुंजित करती हूँ
तुम्हारे ही भजनों को भगवान् को अर्पित करती हूँ..
माँ… तुम सी होने की एक कोशिश रोज करती हूँ!!
तुम सी बनने की कोशिश करती हूँ
तुम्हारा स्नेह बस चाहती हूँ।
डॉ मंजु सैनी
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