तुम्हारी बहुत याद आती है
तुम्हारी बहुत याद आती है
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जब भी सूरज निकलता है
पक्षी चहचहाते हैं
भोर की लालिमा में
हवा के झकोरों से
फसलें लहराती हैं
सच बताऊँ!
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब आहट होती है
मन बेचैन हो जाता है
दौड़कर आ जाता हूँ दरवाजे पर
उफनती यादें
जब भी सांकल बजाती हैं
सच बताऊँ!
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब उदास होता है मन
वेदनायुक्त हो जाता है
अकेलापन
बिखर जाते हैं
यादों के पन्ने
तुम्हारी बातें,सौगातें
मुझे छूकर गुजर जाती हैं
सच बताऊँ!
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब डर लगता है
अँधेरा करता है अट्टहास
चीखता है सन्नाटा
खो जाते हैं शब्द
जुबान लडखडाती है
सच बताऊँ!
तुम्हारी बहुत याद आती है
सब कहते हैं तुम नही हो
मैं जानता हूँ
तुम यहीं हो
अभी-अभी इधर से गुजरे हो
तुम्हारे बदन की खुशबू
मुझे बताती है
सच बताऊँ!
तुम्हारी बहुत बहुत बहुत याद आती है