” तुम्हारी जुदाई में “
तुम्हारी जुदाई में
आंखों से आंसू ही नहीं बहे।।
एक वक्त बाद।
!
आंसुओ के साथ बहे
तुम्हारी यादें….
तुम्हारी बातें….
वो मुलाकातें….
वो जगाती रातें….
और बह गई वो सब उदासियां।
बह गई वो सब बैचेनीयां।।
बह गई वो सब परेशानियां।।।
बह गई वो सब दुरियां।।।।
!
और बहते- बहते ठहर गएं वो
आंसू मेरी कलम में आकर….
उतरने लगीं वो सारी बातें
कागज़ पे समाकर….
और फिर मैं तुम्हें
याद करने लगी….
तुमसे बात करने लगी….
अकेले में मुलाकात करने लगी….
सोकर फिर तुममें जागने लगी….
!
मुझे अच्छी लगने लगी उदासियां….
सखी बन गई बैचेनीयां….
समझाने लगी परेशानियां….
पास रहने लगी दुरियां….
फिर मैं प्रेम के उस द्वौर में
चली गई जहां प्रेम ने मुझे प्रेम समझायां था।
!
और मैं समझ गई कि प्रेम को कभी
समझा ही नहीं जा सकता है….!
प्रेम को बस प्रेम से जिया जा सकता है
महसूस किया जा सकता है….!!
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना