तुम्हारी चिट्ठियां
ग़ज़ल – “तुम्हारी चिट्ठियाँ”
वज्न-२१२२ २१२२ २१२२ २१२
क़ाफ़िया- आरी
रदीफ़- चिट्ठियाँ
दौर- ए- उल्फत में ले जाती हैं तुम्हारी चिट्ठियाँ
हम को हम ही से मिलाती हैं तुम्हारी चिट्ठियाँ
इक ज़माना हो गया है वो समां गुजरे हुए
आज भी धड़काती हैं’ दिल को, तुम्हारी चिट्ठियाँ
बात करती हैं ये’ हमसे आज भी तन्हाई में
बाद तेरे दिलरुबा,साथी हमारी, चिट्ठियां
महकती हैं आज भी ये खुशबू’ बनके इश्क़ की
जान से भी ज्यादा हैं प्यारी , तुम्हारी चिट्ठियाँ
हैं भरे जज़्बात इनमें, रंग सारे प्यार के
याद बस हम पे तुम्हारी हैं, तुम्हारी चिट्ठियां
हाथ में मेहंदी तुम्हारे, सेहरा मेरे सर बंधा
आज तक लेकिन कुंवारी है तुम्हारी चिट्ठियां
हो गए हो तुम किसी के हम किसी के हो गए
आज तक सावन है पाले इश्क़दारी चिट्ठियां
Sawan Chauhan Karoli
२०-०९-२०१९