तुम्हारा हर अश्क।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
तुम्हारा हर अश्क जो नजरो से तुम्हारी गिर रहा है।
पता है हमें बेवफ़ा ये तेरी झूठी कातिलाना अदा है।।1।।
मेरी जिन्दगी से ज़ालिम तू कब का निकल गया है।
पर तिरा खयाल आज भी कभी कभी आ जाता है।।2।।
इतना भी ना सता कि हम पत्थर दिल ही हो जाए।
तू पुकारे कितना भी पर हम कुछ भी ना सुन पाए।।3।।
माना कि इश्क में दर्द सहने की इन्तिहां नहीं होती।
पर सामने हो झूठा यार तो ये बात लागू नहीं होती।।4।।
जो दिया है तुमने यूं धोखा उसका अज्र तो मिलेगा।
तुम्हें सजा मिलेगी जरूर कभी तो खुदा मेरी सुनेगा।।5।।
हर शाम पीने के बाद तेरी याद मिलने आ जाती है।
गर ना पियूँ शराब तो जिन्दगी सुकूँन कहां पाती है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ