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2 Dec 2016 · 1 min read

तुम्हारा सच

कविता
तुम्हारा सच

*अनिल शूर आज़ाद

दर्पण की
एक दरार ने/जब
दो चेहरों में
बांट दिया था
तुम्हारा चेहरा/तो
आगबबूला होकर
फेंक दिया था
तुमने दर्पण

चूर-चूर
हो गया था
दर्पण
पर..तब
एक अचंभा भी
हुआ था

दर्पण के
सैंकड़ो ताज़ा टुकड़ों ने
दिखाए थे/तुम्हारे
और/ढ़ेर चेहरे

और..उजागर
कर दिया था
तुम्हारा सच।

(रचनाकाल : 1988)

Language: Hindi
243 Views
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