मेरे प्रेम के अफसाने
तुमने ही तो कहा था मैं जल्दी ही लौट आऊंगा।।
शायद मैं अनपढ़ हूं, गवार हूं ,अज्ञानी हूं
या तेरे प्रेम के प्रकाश में ,मुझ पर ज्ञान का अंधकार है
तभी तो मैं आज भी ,इस “जल्दी” को समझ ना पाई।
मिनट गुजरा,घंटा गुजरा, दिन गुजरा ,गुजर गई रात।
महीने ही ना गुजरे, गुजर गए न जाने कितने साल।।
पुस्तकालय में में भटक रही,
निकली मैं अर्थ ढूंढने, तुम्हारे इस “जल्दी”शब्द का
जाने कितने खोज डाले शब्दकोश,
शब्द ना बचा मेरे पास, यह तुम्हें समझाने का
शायद मैं राह भटक गई,
भटक गई मैं तेरे प्रेम में ,वो मेरे प्रेम दीवाने
लौटना तो दूर की बात है,
मुझे अब तक भी ना मिले मेरे प्रेम के अफसाने।।