#कुंडलिया//कर्म का फल
#कुंडलिया
हँसते हो अपराध कर , सोचे बिन परिणाम।
देना पड़े हिसाब पर , बनके काल गुलाम।।
बनके काल गुलाम , बुराई सम परछाई।
चलती हरपल संग , यही कड़वी सच्चाई।
सुन प्रीतम की बात , चलो सब अच्छे रस्ते।
वरना रोना ख़ूब , एक दिन हँसते-हँसते।
करना पूजा कर्म की , लेकर अच्छी सोच।
काम बड़ा छोटा नहीं , करो बिना संकोच।।
करो बिना संकोच , बीज लघु से तरुवर फूले।
रीति नीति हो ठीक , काम लघु से नभ को छूले।
सुन प्रीतम की बात , बुराई से तुम डरना।
सही कर्म में शर्म , भूलकर भी मत करना।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित रचना