तुझे ढूंढने निकली तो, खाली हाथ लौटी मैं।
तुझे ढूंढने निकली तो, खाली हाथ लौटी मैं,
उजालों में भटकी हूँ यूँ, की अंधेरों के साथ लौटी मैं।
साग़र की गहराईओं में, अपनी कश्ती डुबो के लौटी मैं,
आँधियों में घर को, अपने खो के लौटी मैं।
बादलों से तेरा पता जो पूछा, भींगो के बारिशों में खुद को लौटी मैं,
शोलों में तलाशा तुझको यूँ की, भस्म हो के लौटी मैं।
जो बैठ खुद में तुझको ढूंढा, तो तुझको ले के लौटी मैं,
यादों में तेरे एहसासों को, पिरो के लौटी मैं।
जो साँसों में खुद के झाँका, तो धड़कनें तेरी ले के लौटी मैं,
आँखों में तेरे सपनों को, संजों के लौटी मैं।
जो आंसुओं में तुझको पढ़ा, तो मुस्कुराहटें तेरी ले के लौटी मैं,
होठों पे तेरे नाम संग, तेरी हो के लौटी मैं।
जो रगों में खुद के बही, तो धाराएं तेरी ले के लौटी मैं,
समंदर से तेरे अस्तित्व, में कतरे सी खो के लौटी मैं।
जो पिघलाया खुद को, तो शीतलता तेरी ले के लौटी मैं,
खामोशी से तेरे शोर में, अपने शब्द संजो के लौटी मैं।