तुझमें बसते प्राण मेरे
बस ऐसे ही ना तुझको चाहूं,
तुझमें बसते प्राण मेरे हैं।
प्राणों से भी प्यारी हो तुम,
मेरी जिम्मेवारी हो तुम।।
तुझ पर जीवन अपना वारू,
देख अनोखा प्यार तू मेरा।
तुझमें देखूं सूरत अपनी,
लगती हैं तू मूर्त मेरी।।
बस ऐसे ही ना तुझको चाहूं…
देखा था जब मैने तुझको,
सुदबुद अपनी खो बैठा था।
देख तुम्हारा माथा प्यार,
अपना दिल में खो बैठा था।।
जब आँखें तेरी पढी थी मैंने,
दिल भी मेरा रो बैठा था।
जब देखा तेरे हृदय को मैंने,
अपना हृदय मैं दे बैठा था।।
बस ऐसे ही ना तुझको चाहूं…
तेरे भाव है सबसे न्यारे,
बिन बोले वह कहते सब कुछ।
ढूंढ रहे थे दोस्त अनोखा,
मुझको मिल गया बस वो मौका।।
मैं फिर ज्यो हाथ बढ़ाया,
झटपट तुमने वो अपनाया।
कही बात फिर सारी दिल की,
और मुझको फिर दिल मे बसाया।।
बस ऐसे ही ना तुझको चाहूं…
जब तक प्राण हैं मुझ में प्रिये,
बस मालिक से भीख ये मांगू।
ना तुझको मैं कष्ट कभी दूं,
तेरा हरदम बनू सहारा।।
मुझ पर अपनी मेहर तू रखना,
कभी मुझे ना छोड़ निकलना।
बस ऐसे ही ना तुझको चाहूं,
तुझमे बसते प्राण मेरे हैं।।
ललकार भारद्वाज