#रुबाइयाँ
प्रेम समाया हो जिस मन में , उसकी कभी नहीं हो हार।
जो बादल जल बरसाएगा , करते सब उसकी जयकार।।
थके पथिक की हार उतारे , बनता साँसों का आधार।
नमन पवन के उस झोंके को , जो प्राणों का होता सार।।
सबका चित जो हर लेते हैं , कहते उनको हम संस्कार।
ऊँचा करता कद मानव का , सच्चा होता जो व्यवहार।।
गुण की पूजा सदा रहेगी , छल की हो सकती इक बार।
जीवन ऐसा जीना भाई , जिसका हो आदर सत्कार।।
विश्वास गया फिर ना आए , छूट धनुष से जैसे तीर।
मर्यादा में जो रहता हो , क्षणभर होता नहीं अधीर।।
चोर सदा ही डर में रहता , मिटे नहीं उसकी ये पीर।
सीधा-सादा जीवन सुखमय , मानो इसको शुभ तक़दीर।।
#आर.एस.’प्रीतम’