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30 Mar 2023 · 3 min read

तीन सौ वर्ष पुराना माई का थान और उसके सेवारत महामंत्री सुनील

तीन सौ वर्ष पुराना माई का थान और उसके सेवारत महामंत्री सुनील कुमार अग्रवाल
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पुराना गंज, रामपुर (उत्तर प्रदेश) स्थित मंदिर माई का थान जाने का सौभाग्य चैत्र नवरात्रि की दुर्गा अष्टमी को प्राप्त हुआ । यह मार्च 2023 की 29 वीं तिथि बुधवार का दिन था । यद्यपि पहले भी कई बार इस सिद्ध पीठ के दर्शन का शुभ अवसर मिला था, किंतु इस बार विशेषता यह रही कि मंदिर के महामंत्री श्री सुनील कुमार अग्रवाल से भी भेंट हो गई। नमस्कार का आदान-प्रदान हुआ फिर काफी समय आपके साथ बैठकर तथा मंदिर परिसर में घूमकर बारीकियों के निरीक्षण का अवसर मिल गया।
श्री सुनील कुमार अग्रवाल पिछले पैंतीस वर्षों से माई का थान मंदिर कमेटी के महामंत्री पद को सुशोभित कर रहे हैं। साढ़े तीन दशक किसी संस्था की सेवा करना अपने आप में एक सराहनीय कार्य है । जब सुनील कुमार जी ने महामंत्री पद का कार्यभार संभाला, तब उनके जीवन में युवावस्था का नव-प्रभात था । पुराने गंज के अग्रणी महानुभावों ने उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त मानते हुए जिम्मेदारी सौंप दी और सुनील कुमार जी ने ईश्वर की इच्छा समझकर इस दायित्व को कुछ ऐसा निर्वहन करना आरंभ कर दिया कि साढ़े तीन दशक कैसे बीत गए, कुछ पता ही नहीं चला। अब सुनील कुमार जी के बाल सफेद होने लगे हैं, लेकिन उत्साह में कमी नहीं आई है ।
माई का थान मंदिर के इतिहास को हमने सोचा कि सुनील कुमार जी से बेहतर भला कौन बता सकता है। पूछ लिया कि माई का थान कितना पुराना होगा ?
यह तीन सौ साल पुराना इतिहास है -सुनील कुमार जी ने पूरे आत्मविश्वास के साथ बताया। रियासत काल के वर्षों में यह एक आस्था से भरी हुई मिट्टीनुमा रचना थी। फिर नई मूर्ति की स्थापना हुई और अब तो माता के शीश पर सोने का मुकुट सुशोभित हो रहा है। सुनील कुमार जी ने बताया कि पूरे छह तोले का यह सोने का माता का मुकुट है और तब हमने महसूस किया कि सचमुच इसीलिए इस मुकुट की चमक माता के मस्तक की शोभा को द्विगुणित कर पा रही है ।
माई का थान वास्तव में एक ऐसी शब्दावली है, जो देवी के स्थान को इंगित करती है। प्रायः यह अनगढ़ स्थितियों को प्रकट करने वाली शब्दावली है। मंदिर का भव्य स्वरूप भारत भर में जहॉं भी माई के थान होते हैं, बाद में ही दिया गया ।
आज माई का थान पुराना गंज, रामपुर में देवी के गर्भगृह के दरवाजे चॉंदी के बने हुए हैं। संयोगवश जब यह चॉंदी के दरवाजे निर्मित हुए, उस समय भी चॉंदी का भाव सत्तर हजार रुपए प्रति किलोग्राम था और आज भी लगभग इतना ही है । जब सुनील कुमार जी ने यह बात बताई, तब मुझे इतिहास का वह दौर याद आया, जब बहुत थोड़े समय के लिए चॉंदी का भाव सत्तर हजार रुपए हुआ था।
मंदिर में देवी के नौ स्वरूपों को जिस सुंदर शिल्प के साथ परिक्रमा मार्ग की दीवारों पर स्थापित किया गया है, वह देखते ही बनती हैं । विशेषता यह है कि इन मूर्तियों के आगे शीशा लगा हुआ है जिसके कारण इनकी चमक कम नहीं होती । साफ-सफाई में भी सुविधा रहती है । किशनगढ़ (राजस्थान) में कारीगरों की तलाश करके सुनील कुमार जी ने कई चक्कर लगाए, मूर्तियों के निर्माण की प्रक्रिया को देखा-परखा और तब इनकी शोभा से माई का थान आज जगमगा रहा है । फर्श पर जो पत्थर बिछे हुए हैं, वह भी किशनगढ़ (राजस्थान) से मॅंगवाए गए हैं। स्वयं सुनील कुमार जी वहॉं जाकर इन पत्थरों को लेकर आए थे। पूजा का थाल, जो गर्भगृह में रखा हुआ है, वह भी शुद्ध चॉंदी से निर्मित है । सुनील कुमार जी ने इंगित करते हुए दिखाया तो मंदिर की मान्यता के अनुरूप उसकी भव्यता के लिए प्रयत्न करने वाले समस्त महानुभावों के प्रति हृदय नतमस्तक हो गया।
माई का थान मंदिर के इतिहास के क्रमबद्ध विवरण से अवगत कराने के लिए श्री सुनील कुमार अग्रवाल जी का हृदय से धन्यवाद ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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