*तीन मुक्तक*
तीन मुक्तक
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(1) मिटी हस्ती
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न कोई फर्क है ,शमशान-कब्रिस्तान दोनों में
हुए मिट्टी यहाँ आकर ,सभी इन्सान दोनों में
न कोई फर्क मुर्दे को ,जलाओ या दफन कर दो
मिटी हस्ती रही कोई ,नहीं पहचान दोनों में
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(2) खुदा-भगवान दोनों में
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उसी की मिल्लियत शमशान कब्रिस्तान दोनों में
वही बाहर वही अन्दर मिला अनजान दोनों में
ये जिंदा लोग क्या समझें ,किसी मुर्दे से पूछो तो
बताएगा वो सच यह है ,खुदा-भगवान दोनों में
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(3) सुनहरा पल नहीं होता
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रुकी यदि साँस उसके बाद में फिर कल नहीं होता
बहुत से रोग ऐसे हैं कि जिनका हल नहीं होता
नहीं बनती है कोठी-बंगलों से सुख की परिभाषा
सुनहरे-स्वास्थ्य से अच्छा ,सुनहरा पल नहीं होता
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रचयिता : रवि प्रकाश बाजार.सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451