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19 Sep 2021 · 1 min read

तीन जनक छन्द

इ सावन क जे रूप अछि
वसुन्धरा जे भीजतइ
इ पृथ्वी क अनुरूप अछि

***

इ बरखा क आनन्द अछि
भीजत समस्त विश्व मे
इ वर्षाऋतु क छन्द अछि

***

अन्तरघट धरि प्यास अछि
बरखा सँ नहियेँ बुझब,
इ मनवा बड़ उदास अछि

***

Language: Maithili
2 Likes · 2 Comments · 437 Views
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