तीन किताबें
वो तीन किताबें थी,
क्या नहीं था उनमें,
फिर क्यों मुझको बेचा,
क्या फर्ज हुआ था पूरा,
या मित्रता हमसे तोड़ दी,
उन कूड़ो के ढेर में,
ज्ञान मेरी तोल दी,
कितना तिरस्कार,
सच्ची मित्रता ,
यूँ बाजार में बेच दी ।
वो तीन किताबें …….।
यूंँ उदास पड़ा देख मुझको,
नए मित्र ने मुझको ले ली,
मिला मित्र अब सच्चा,
यह परीक्षा उसने दे दी,
भरा हुआ था मुझ में सब कुछ ,
ऐसी जगह उसने दे दी ,
पुस्तकालय में मिला सम्मान ,
अहमियत मेरी पढ़ ली ,
अनमोल ज्ञान उसने ले ली।
वो तीन किताबें…….।।
***बुद्ध प्रकाश
*** मौदहा हमीरपुर ।